Saturday 14 September 2013

"क्या तुमने ईश्वर को देखा हैं?"

आओ दोस्तो ... मैं आप को एक कहानी सुनता हू ..
ये उस वक़्त की कहानी हैं जब मैं एक साधुसे मिला था ..
उसने मुझसे पूछा "क्या तुमने ईश्वर को देखा हैं?"

मैं सोचने लगा "क्या मैने ईश्वर को देखा हैं?"

"हा" मन बोला "मैने ईश्वर को देखा हैं"
"ये मंदिर हैं .. यहा मैने ईश्वर को देखा हैं ..
वो मस्जिद हैं .. वहा मैने मैने ईश्वर को देखा हैं ..
ये चर्च ... ये गुरुद्वारा ... कैसे बताऊ कहा कहा उसे देखा हैं ..
कभी एकही ईश्वर को देखा हैं ... मंदिर मस्जिद गिरिजाघर में ..
ना बोल रहा था .. ना सुन रहा था .. ना चल रहा था   
ना हिल रहा था .. ना डूल रहा था ...
बस चुपचाप खडा था .. बुत बने ...
सामने कुछ भी रखो ..  ना खाता हैं ना पीता हैं
उस चीज को उठाना तो दूर छुता भी नही हैं  
कभी हजारो ईश्वर देखे ... किसी एक ईश्वर के सामने झुकते हुवे"

मैने साधुसे हसकर कहा "हा . . . मैने ईश्वर को देखा हैं"
मैने उससे पुछा "क्या तुमने ईश्वर को देखा हैं?"
उसने कहा "नही .... अब तक मुझपे उसकी कृपा नही हुई हैं .. मैने ईश्वर को नही देखा"
मैं अचंबित हो गया ..

मैने मन से पूछा "जो मैने देखा, वह तो उसने भी देखा ..
फिर वह क्यू कहता हैं के उसने नही देखा?"

मन ने जवाब दिया "चाहे तो देखा सकता हैं, पर वह चाहता नही हैं"
मैने कहा "पर वह तो चाहता हैं के वह ईश्वर को देख सके"

"वह कहता हैं के वो चाहता हैं .... पर
कहना और चाहना दो अलग बाते हैं"
मैने पूछा "ये कैसे पता चले के इसमे क्या अंतर हैं ?"

"आसान हैं ... सिर्फ कहनेसे कुछ नही होता हैं ..
चाहने के लिये पहले चाह पैदा होना जरुरी हैं ...
जब ठोकर लगती हैं तो मुह से आह निकलती हैं ..
उस आह से ... उस वेदना से मुक्ती पाने के लिये 
जो चीज जरुरी होती हैं उसकी चाह मन में पैदा होती हैं ..
हम उस चीज को ढुंढते हैं ... वो नही मिलती तो उसकी चाह बढती हैं और ..
उसे पाने की आस हममे पैदा हो जाती हैं ..  

अब बताओ .. पानी कब चाहिये होता हैं ?
जिसके गले में .. शरीर में सुखेपन की वेदना होती हैं ..
उसे पानी की आस लगती हैं ... अर्थात प्यास लगती हैं ..
प्यास क्या हैं ... पाने की आस हैं  वही प्यास हैं ...

वैसे ही जब वेदना और पीडा होती हैं  ..तो ईश्वर की आस होती हैं ..
जिसे ईश्वर की आस हैं, जिसे ईश्वर की प्यास हैं वही ईश्वर को देख सकेगा"

मैने पुछा "क्या जिसे ईश्वर की प्यास हैं वह ईश्वर को पा सकेगा?"
मन बोला " नही .... वह ईश्वर को देख तो सकेगा ... मगर
जिसे देखा वह ईश्वर हैं ये कैसे कह सकते हैं? ये ईश्वर क्या हैं? "

मैं सोचता रह  गया ..

कुछ पल बाद मन बोला "ईश्वर एक प्यास का अंत हैं ..
वह एक अहसास हैं ... इस एहसास को जब जान लो .. 
तो उसे पहचान लोगे"
मैने पुछा "क्या उसके अहसास होने पर उसे पा सकते हैं?"

"नही ... उसकी पहचान तो हो जाती हैं .. पर वह काफी नही हैं ..
पानी के पहचान से प्यास तो नही बुझती .. 
प्यास तब बुझती हैं जब पानी पी लोगे .. 
वैसेही जब इस अहसास को अपने अंदर महसूस करोगे .. 
तब उसे पा लोगे"

"जिसने दुध के बरे में सुना हैं वह अज्ञानी हैं
जिसने दुध को देखा हैं वह आधा ज्ञानी हैं
जिसने दुध को पिया वही ज्ञानी हैं 
क्योकी वही बता सकेगा के दुध और सफेद पानी में क्या फरक हैं"